मंगरूआ
दिल्ली: कोरोना महामारी के दौरान गांव की आत्मनिर्भरता का सवाल बहस के केंद्र में है। कई स्तर पर इस विषय पर संवाद की प्रक्रिया चल रही है। इस बहस को नया आयाम तब मिला जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से कहा कि लोकल सिर्फ जरूरत नहीं, हम सभी की जिम्मेदारी है। लोकल को अब हमें अपना जीवन मंत्र बनाना होगा, आज से हर भारतवासी को अपने लोकल के लिए वोकल बनना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि पोस्ट कोरोना हमारे लिए संदेश यही है कि देश को आत्मनिर्भर बनना होगा। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के लिए हमें अपने पांच पिलर को मजबूत करना होगा. इनमें इकॉनोमी, इंस्फ्रास्ट्रक्चर, सिस्टम, डेमोग्राफी, डिमांड शामिल हैं, जिन्हे दुरुस्त करना होगा। प्रधान मंत्री के इस संदेश को समझें और लक्ष्य पर पहुंचने के लिए उनके द्वारा बताये गए मंत्र को आत्मसात करें तो समझ आता है कि देश के आत्मनिर्भरता का रास्ता गांव से होकर गुजरता है। यदि गांव की अर्थव्यवस्था, संस्थागत ढ़ाचे, व्यवस्था, जनाकिकी, और मांग को व्यवस्थित करें और गांव में पैदा किये गये अनाज और वहां तैयार किये गए उत्पाद को बेहतर सप्लाई चेन के जरिए जहां इसकी खपत हो वहां तक पहुंचाने सुनिश्चित करें तो गांव को आत्मनिर्भर और भारत को खुशहाल होने से कोई नहीं रोक सकता।
स्वाभाविक है सुझाव सरल है लेकिन कार्यान्यवयन का रास्ता सरल नहीं है। कई स्तर पर इसे लेकर विमर्श और जनमत बनाने की दरकार है तभी मनोमुताबिक परिणाम आयेंगे। इसी संदेश को जमीनी स्तर पर लोगों से पहुंचाने के लिए कई स्तर पर गांव से जुड़ी और पंचायती राज को बदलाव का सूत्र मानने वाली संस्थाएं अपने—अपने स्तर पर प्रयास कर रही हैं।
उसी में एक संस्था है डॉ चंद्रशेखर प्राण के नेतृत्व में चलाई जाने वाली तीसरी सरकार अभियान। जो लॉक डाउन के बाद डिजिटल माध्यम का प्रयोग करते हुए ‘‘कोरोना संकट बचाव एवं राहत तथा आत्मनिर्भर गांव” विषय पर अलग-अलग राज्यों में गांव-पंचायत में काम करने वाले लोगों के साथ मिलकर वेबीनार का आयोजन कर रही है। इस कड़ी में अबतक उत्तर प्रदेश, बिहार,झारखंड और मध्यप्रदेश में गांव—गंवई के विकास और उत्थान को लेकर काम कर रहे लोगों से संवाद किया गया। यह प्रक्रिया लगातार चल रही है। इस कड़ी में राजस्थान आदि राज्य भी शामिल होंगे। पंचायत खबर इन सभी राज्यों में हुए संवाद को बारी—बारी से आपके समक्ष प्रस्तुत करेगा। पेश है विगत 7 जून 2020 को मध्य प्रदेश में हुए संवाद की ये रिपोर्ट…
तीसरी सरकार अभियान द्वारा आयोजित ‘‘कोरोना संकट बचाव एवं राहत तथा आत्मनिर्भर गांव” विषय वेबीनार में अन्य राज्यों की तरह ही मध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों से पंचायत प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, विचारक एवं पत्रकार सम्मिलित हुए। इसके साथ ही इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं हिंदुस्तान समाचार समूह के संपादक रामबहादुर राय, जागरण विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अनूप स्वरूप, दिल्ली की म्युनिसिपल कमिश्नर डॉ रश्मि सिंह, मिशन समृद्धि के संस्थापक सदस्य योगेश एंडले ने भी अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराते हुए संवाद की प्रक्रिया को व्यापक बनाया। तीसरी सरकार अभियान के संस्थापक डा.चन्द्रशेखर प्राण ने कार्यक्रम का संयोजन किया। उन्होंने विषय प्रवेश करते हुए कहा कि रोजी-रोटी की तलाश में जो कामगार गांव छोड़कर शहरों में चले गये थे, कोविड 19 की महामारी के कारण इस समय वह गांव वापस लौट आए हैं। आशंका है कि इनमें से बहुत लोग संक्रमित हैं। जिस आशा से वह लौटे हैं, कि यह उनका गाँव और घर है, यहां उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन भय के कारण कई स्थानों से भेदभाव की अप्रिय सूचनाएं मिल रही है। जो बाहर से आये हैं, उन्हें कैसे राहत पहुंचाई जाय और जिन्हें संक्रमित होने का खतरा है, उनका कैसे बचाव किया जाय। इसका क्या तरीका हो सकता है। प्रत्येक गांव की परिस्थितियां अलग हो सकती हैं, उसी के अनुसार उनका आकलन किया जाना चाहिए। कोरोना ने आत्मनिर्भरता का भी संदेश दिया है। यह आत्मनिर्भरता गांव में कैसे आयेगी। व्यक्ति की आत्मनिर्भरता कैसे गांव और देश की आत्मनिर्भरता बने, इस पर भी विचार करना है। राहत, बचाव और आत्मनिर्भरता के कार्य में पंचायत की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। आज के इस वेबिनार में इन बिन्दुओं पर विचार किया जाना है। इसके अतिरिक्त यह प्रयास कहाँ और किसके माध्यम से किये जा सकते हैं, यह भी देखना होगा। मुख्य रूप से इन बिंदुओं पर विचार और सुझाव आने चाहिए।
1- राहत एवं बचाव कार्य में क्या किया जा सकता है।
2- आत्मनिर्भरता के लिए क्या कार्यक्रम या एक्शन हो सकता है।
3- क्रियान्वयन किस तरह हो सकता है तथा किसके माध्यम से किया जा सकता है।
विचार एवं सुझाव के क्रम में सबसे पहले जागरण विश्वविद्यालय के उपकुलपति श्री अनूप स्वरूप ने कहा कि कोविड-19 के कारण मजदूरों की पीड़ा का जो दृश्य दिखा, वह हृदय विदारक है। मैं इसे चुनौती नहीं, देश की आत्मनिर्भरता का एक अवसर मानता हूँ। ग्रामीण भारत तो पहले से ही आत्मनिर्भर रहा है। राज्य सरकार अच्छा कार्य कर रही है। केन्द्र सरकार ने भी राहत पैकेज की घोषणा किया है। आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास से आयेगी। इसके लिए नयी सोच की जरूरत है। ग्रामीण स्वराज्य से ही भारत आगे बढेगा।
गांव की आत्मनिर्भरता के लिए जरूरी है बेहतर कार्यसंस्कृति: रामबहादुर राय
इस मौके पर हिंदुस्तान समाचार समूह के संपादक एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के चेयरपर्सन पद्मश्री राम बहादुर राय ने कहा तीसरी सरकार अभियान का प्रयास सराहनीय है। सरकार के ऐसे प्रयास से समाज को मानसिक तैयारी का मौका मिलेगा। यह सत्ता के विकेंद्रीकरण का प्रयास है। लोकतंत्र ऐसा विचार नहीं है, जिसमें एक सरकार काम करें। यह एक जीवन शैली है, जो परस्परता से चलती है। ग्राम स्वराज्य की बात महात्मा गांधी जी ने भी की है। उन्होंने हमारे इतिहास को देखा, पढा, जाना और समझा था। वर्ष 1830 में चार्ल्स मेटकाफ ने कहा था कि भारत का जो ग्राम समाज है, वह स्वावलंबी और आत्मनिर्भर है। वह अपनी जरूरत की सभी चीजें अपने भीतर से ही पूरी कर लेते हैं यह पूरी तरह आत्मनिर्भर होते हैं। आत्मनिर्भरता की यह स्थिति 1857 तक थी। उसके बाद अंग्रेजी राज्य आया। जिसने भारतीय उद्योग धंधों को नष्ट कर दिया। आजादी के बाद यह किया जाना था कि गांवों को उनकी स्वाधीनता लौटा दी जाती और गांव पहले की तरह आजादी से अपना काम करते । किन्तु ऐसा नहीं हो सका इसके लिए पुनः प्रयास करना होगा। एक कार्य संस्कृति पैदा करनी होगी। कार्य संस्कृति से ही स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता आती है। सोशल कैपिटल से भी आत्मनिर्भर आती है। सोशल कैपिटल कैसे जनरेट हो, इस पर हमको विचार करना चाहिए । यदि हम सब इस दिशा में कुछ सार्थक कर सकते हैं तो कोरोना का संकट एक अवसर में बदल जाएगा।
सरकार नहीं आम आदी ले आएगा ग्राम स्वराज्य: श्याम बोहरे
प्रख्यात गांधीवादी विचारक श्याम बोहरे ने बताया कि सिर्फ आत्मनिर्भरता कहने से आत्मनिर्भरता नहीं आएगी। जब तक सरकार एफडीआई की बात कर रही है, तब तक वह देश को आत्मनिर्भर कैसे बना सकती है। पंचायतें सरकारोन्मुखी हैं, समाजोन्मुखी नहीं हो पा रही हैं। सरकार, ग्राम स्वराज नहीं ला सकती। ग्राम स्वराज्य आम आदमी ले आएगा। सरकार सिर्फ उसकी बाधा दूर कर सकती है। पंचायतों को नियमों के बाहर जाकर भी कार्य करने की आवश्यकता है। जब तक नियमों की बंदी रहेंगी, गांव की आवश्यकता के हिसाब से काम नहीं कर पाएंगी। होना तो यह चाहिए था कि पंचायत संविधान के सीमा में रहती और स्वतंत्रतापूर्वक काम करती, लेकिन सरकारों ने ऐसा नहीं होने दिया। पंचायत के लिए केवल दो नियम आवश्यक है, पहला संविधान के दायरे में रहकर काम करना और दूसरा वित्तीय अनियमितता न हो यह देखना। सिविल सोसाइटी के लोगों ने कुछ जानकारी दी है, इसलिए कहीं-कहीं पंचायत प्रतिनिधि अच्छा कार्य कर पा रहे हैं। गांव के लोगों को भी वोटर से नागरिक बनना होगा। कमजोर समाज और मजबूत सरकार से काम नहीं चलेगा। समाज को मजबूत करना होगा। पंचायत को जब तक काम करने की आजादी नहीं देंगे तब तक बात नहीं बनेगी। जो गांव के सामने आवश्यकता है, उसको कर लेने की स्वतंत्रता दें। अभी भी हम अपने को शासक नहीं, शासित मानते हैं। शासन कैसे करना है, इसको सीखना पड़ेगा। यह काम सरकार नहीं करेगी। यह समाज को ही करना पड़ेगा। पंचायतों को स्वायत्त संस्था के रूप में काम करने में सक्षम होना होगा।
गांव की आत्मनिर्भरता के लिए जरूरी है सीमित संसाधनों का प्रभावी उपयोग: डॉ रश्मि सिंह
दिल्ली की म्युनिसिपल कमिश्नर डॉ रश्मि सिंह ने कहा कि प्रशासन के पास कोविड-19 की महामारी से निपटने का कोई मॉडल नहीं था। इसलिए निर्देशों में बार-बार परिवर्तन करना पड़ा। जागरूक लोगों को प्लानिंग में जोड़ना पड़ेगा। यदि गाइडलाइन समाज के अनुभव के साथ बनेगी तो अधिक उपयोगी होगी। माइक्रो प्लानिंग गांव स्तर पर होगी तो ज्यादा ठीक होगी। काम करने वाली एजेंसियों को कुछ फ्लैक्सिबिलिटी देनी पड़ती है जिससे वह आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकें। गांव के विकास के लिए 60 से 70 योजनाएं हैं लेकिन इनमें परस्पर तालमेल नहीं है। इनको सुनियोजित तरीके से एक साथ जोड़कर लागू करने की आवश्यकता है। आत्मनिर्भर होने के लिए सीमित संसाधनों का प्रभावी उपयोग कैसे किया जाय। इसके लिए संवाद बहुत महत्वपूर्ण है। संवाद से समाधान निकलता है। महिलाओं को प्राथमिकता एवं सशक्त भागीदारी देने से विकास कार्यों को गति मिलेगी। आज का युग कनेक्टिविटी का है। कनेक्टिविटी के माध्यम से ही यह वेबीनार हो पा रहा है। ई-कॉमर्स का जमाना है। मार्केट का लिंकेज इसके माध्यम से बन सकता है। स्थानीय उत्पादों में गुणवत्ता का ध्यान रखने से वह प्रतिस्पर्धा में अच्छा परिणाम ले पाएंगे। समग्र रूप से सामंजस्य बनाकर कैसे काम किया जाए, यह एक बड़ी चुनौती है। योजनाओं और विभागों में तालमेल की आवश्यकता है।
प्रशासन का पंचायतों पर अविश्वास को विश्वास में बदलने की चुनौती: योगेश कुमार
समर्थन संस्था के निदेशक योगेश कुमार ने मध्यप्रदेश की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस संकट के समय दो तरह की स्थिति उभर कर आयी है। पंचायतों का ढांचागत प्रबंधन तो बहुत अच्छा रहा है, लेकिन प्रशासनिक प्रबंधन में अच्छे लोगों की जरूरत है। पंचायतों ने लोगों को जागरूक करने, राशन दिलाने और पहुंचाने की अच्छी व्यवस्था की है। पंचायतें शासन की कठपुतली नहीं हैं। उन्हें भी अपने गांव की आवश्यकता को देखते हुए कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ में अच्छा काम हुआ है। यहां क्वारंटीन स्थलों पर लोगों के लिए खेलने और मनोरंजन की व्यवस्था की गयी। कहीं-कहीं भेदभाव भी देखा गया। इस पर संवेदनशील होने की जरूरत है। संक्रमण धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है, इससे बचाव के लिए पंचायतें, स्वास्थ्य केंद्रों के साथ ताल-मेल करके अच्छा कार्य कर सकती हैं। गांव में इस समय बहुत बेरोजगारी है। अनेक मजदूर ऐसे हैं, जो 15 दिन भी बिना पैसे के नहीं रह सकते। अनेक लोगों के पास जॉब कार्ड नहीं है। जनधन का खाता नहीं है। गांव में 75 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जिनके पास 2 एकड़ से कम जमीन है। मध्यप्रदेश में ज्यादा उपज नहीं मिलती। जमीन ज्यादा उपजाऊ नहीं है। कुशल श्रमिक मनरेगा में कार्य नहीं कर सकते। इन्हें कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम मिल सकता है। इसके लिए गांव और नगर के अंतर्संबंध को टटोलना पड़ेगा। ज्यादातर मजदूर कृषि क्षेत्र में ही काम करने वाले हैं। इनमें से कुछ लोगों में अगर उद्यमिता हो तो अच्छा कार्य कर सकते हैं, लेकिन मार्केटिंग की समस्या होगी। लगभग 50 फीसदी लोग जरूर वापस जाएंगे, उन्हें गांव में रोकने के लिए क्या किया जा सकता है? आत्मनिर्भरता के मसलों को पंचायत कैसे हल कर सकती है। उसके लिए फूड प्रोसेसिंग आदि का काम देखना होगा। जिला नियोजन समिति को नए सिरे से सक्रिय करना पड़ेगा। जिससे आत्मनिर्भरता के विषय को योजना में शामिल किया जा सके। प्रशासन का पंचायतों पर अविश्वास झलकता हैं। यह विश्वास में कैसे बदलेगा, यह भी चिंता का विषय है। गांव में ग्राम कोष और अन्नकोष की परंपरा को फिर से जीवित करने की आवश्यकता है। इससे संकट के समय अच्छी सहायता मिल सकती है।
क्या कहते हैं पंचायत प्रतिनिधि
सरपंच उमा जी (बैतूल) ने कहा कि संकट का सामना करने के लिए संवाद और चिंतन महत्वपूर्ण होता है। सरकार की मंशा और गांव की हालत को देखते हुए कार्य की योजना बनानी पड़ेगी। आत्मनिर्भरता के साधनों में डेयरी या दूध का उत्पादन एक अच्छा कार्य हो सकता है। इसमें तुरंत फायदा मिलता है। सब्जी उत्पादन और वनोपज भी लाभदायक हो सकती है। कई जगहों पर इस बार 4 क्विंटल तक महुआ प्रत्येक घर में बिना गया है। यदि मार्केटिंग में बिचैलियों को समाप्त किया जा सके तो ग्रामीणों का लाभ बढ़ जाएगा। यह भी एक समस्या है कि लोग पंचायतों के कार्य में सहभागी नहीं होते। सामाजिक संगठनों को भी सहभागी बनाना चाहिए। महिलाओं की स्थिति पर अलग से सोचना चाहिए।
होशंगाबाद से उपमा दीवान जी ने कहा कि पंचायतों ने अच्छा कार्य किया है। कहीं कोई असंतोष नहीं है। फंड की कमी जरूर रही है। पंचायतों को दिए गए निर्देश कई बार बदले गए। इससे उन्हें समझने में परेशानी हुई है। कोरोना वायरस परेशानी से ज्यादा सीख देने के लिए आया है। इस समय हम जो कर सकते हैं, उसे जरूर करना चाहिए। पंचायतों के हाथ और खोलने चाहिए। जीपीडीपी में पलायन को लेकर भी योजना बननी चाहिए। इसके अतिरिक्त ग्राम पंचायत के पास मजदूरों का पूरा रिकॉर्ड होना चाहिए कि उनके गांव से कौन व्यक्ति कहां काम करने गया है। इस समस्या से लगा कि इस तरह का कोई कम्युनिकेशन नहीं था। अगर होता तो लोगों को सहायता पहुंचाने और उन्हें वापस ले आने में बहुत सुविधा मिलती। कृषि में काम करने वालों की कमी है। कृषि भी एक सम्मानित कार्य हो सकता है। इस पर थोड़ा नजरिया बदलने की जरूरत है। महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ रही हैं। इसलिए प्लानिंग में महिलाओं के मुद्दों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
अमित मेहता जो बड़वानी जिले से हैं,उन्होंने बताया कि उनके गांव में 75% लोग बाहर काम करने जाते हैं। सभी वापस आए हैं। अभी तो मनरेगा में कुछ काम मिल रहा है लेकिन आगे नहीं मिल पाएगा। मनरेगा बहुत अच्छा विकल्प नहीं है। इसलिए पंचायत को इस पर एक ठोस योजना बनानी पड़ेगी।
बड़वानी से अंबाराम मुकाती ने कहा कि लोग केवल आजीविका के लिए पलायन नहीं करते बल्कि इसके पीछे शिक्षा व स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण कारण हैं। यदि सरकार लोगों के शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर व्यवस्था गांव में ही करने पर ध्यान दे तो बाहर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
रामजी राय का कहना था कि जब भी हम किसी क्षेत्र में पलायन के बारे में पता करने जाते थे तो लोग यही बताते थे कि हमारे यहां पलायन ना के बराबर है, लेकिन अब सच्चाई सामने आ गई है। इसलिए आवश्यक है कि इन लोगों के लिए स्थाई तौर पर काम उपलब्ध कराने की व्यवस्था बनाई जाय। मनरेगा में मजदूरी की दर बहुत कम है, इसे बढ़ाया जाना चाहिए। सौ दिन का रोजगार भी पर्याप्त नहीं है। इसे भी बढ़ाया जाना चाहिए।
खोमेश फिरके ने कहा कि किसानों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उनके लिए अनेक योजनाएं हैं लेकिन उनका सही अनुपालन नहीं हो पाता। पिगरी, फिशिंग आदि का काम भी उनके द्वारा किया जा सकता है। कुछ गांव का एक कलस्टर बनाकर फूड प्रोसेसिंग का कार्य शुरू किया जा सकता है। मार्केटिंग की समस्या दूर की जा सके तो अच्छा प्रयास हो सकता है। जबकि विशिष्ट ज्योति सामाजिक संस्थान के प्रतिनिधि और भूतपूर्व सरपंच सुधाकर खडसे ने कहा कि 15वें वित्त आयोग में पंचायत को स्वतंत्र अधिकार दिया जाए। दूसरे पंचायत के प्रतिनिधियों को भी अपने अधिकार और कर्तव्यों को लेकर जागरूक होना जरूरी है।
अन्य वक्ताओं की राय
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र बंधु ने बताया कि प्रवासी श्रमिकों की समस्या को दीर्घकालिक रूप में देखना होगा। यदि लोग गांव में रुकते हैं तो पंचायत को उनके लिए योजना बनानी पड़ेगी। जमीन को कैसे उपजाऊ बनाया जाए, इसके लिए कार्य करना पड़ेगा। मनरेगा की योजना बनाने की जिम्मेदारी पंचायत को देनी पड़ेगी। एक परिवार को 100 दिन का रोजगार मिलता है, इतने से काम नहीं चलेगा। अभी तो रोजगार मिल रहा है लेकिन आगे बरसात आ जाएगी तो रोजगार नहीं मिल पाएगा। जो कुशल श्रमिक हैं उनकी स्किलमैपिंग करनी पड़ेगी। यह देखना पड़ेगा कि उनको काम कहां से मिल पाएगा। पंचायत स्वतंत्र तरीके से काम नहीं कर रही है। अभी पंचायत यह सोच रही है कि योजना आएगी तब उसको इंप्लीमेंट करेंगे। पंचायत यह नहीं सोच रही है कि यह हमारे गांव के लोग हैं, इनको कैसे सतत आजीविका मिल सकती है। वहीं चर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉ. दीपेंद्र शर्मा ने कहा कि पहली बार सरकार का ध्यान गांव पर गया है। लघु उद्योग, कुटीर उद्योग शुरू किए जाएं। इस अवसर के उपयोग में पंचायत और सामाजिक संगठनों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। गांव के उद्योगों को मार्केटिंग की सुविधा दी जाए।
मिशन समृद्धि के प्रतिनिधि योगे एंडले ने बताया कि हमें यह देखना चाहिए कि गांव में कोविड-19 बीमारी से बचाव के लिए क्या किया जा सकता है और इस बारे में लोगों को कितनी जानकारी है। उद्यमिता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। मार्केटिंग के लिए लिंकेज जोड़ने पड़ते हैं। इस दिशा में एक छोटा सा प्रयोग कर सकते हैं, यदि आपका कोई उत्पाद है तो उसको फेसबुक पर पोस्ट कर सकते हैं। इससे बहुत सारे ग्राहक सीधे आप तक पहुंच सकते हैं। इस तरह के प्रयोग करके देखिए यदि सफल होता है तो एक नया रास्ता खुल जाएगा। कुछ क्षेत्रों में सब्जी को सुखाकर पैक कर बेचने का प्रयास हो रहा है। सब्जी को सूखा लेने से उसे एक साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है और उसे उपयोग में लाया जा सकता है। झारखंड में जल संरक्षण के लिए एक अच्छा प्रयोग हुआ है। ‘खेत का पानी खेत में’ अभियान चलाया जा रहा है। यह खेती के लिए बहुत लाभदायक हो सकता है। ई-मार्केटिंग आसान है। चंदेरी साड़ियों के लिए डिजिटल इंडिया फाऊंडेशन ने अच्छा किया है। हमारे साथ कुछ डेवलपमेंट एक्सेलरेटर कार्य कर रहे हैं, उनका भी सहयोग लिया जा सकता है। इस संकट में तमाम स्थानों पर लोगों ने अच्छा कार्य किया है। यदि इन सकारात्मक कहानियों का संकलन किया जाय तो आगे पंचायतों के सशक्तिकरण के लिए यह अच्छे उदाहरण साबित होंगे।
हिन्दुस्तान समूह के राज्य प्रमुख मयंक चतुर्वेदी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने स्थानीय कला और विशिष्टता के उत्पादों को प्रोत्साहित किया है लेकिन मध्यप्रदेश में चंदेरी साड़ियों के अलावा कोई प्रयास नहीं हो रहा है। यहां भी सरकार को स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
इस परिचर्चा के बाद ज्यादतर प्रतिभागियों में जिन बिंदुओं पर आम राय बनी वह इस प्रकार है।
1- यह कि मध्य प्रदेश सरकार को एक प्रतिवेदन दिया जाय, जिसमें राहत एवं बचाव कार्य में आने वाली परेशानियों को दूर करने तथा आत्मनिर्भरता के लिए ठोस रणनीति बनाने का आग्रह किया जाय।
2- विभिन्न योजनाओं और विभागों द्वारा किए जाने वाले एक तरह के कार्यों में कैसे बेहतर तालमेल स्थापित हो, इस विषय पर भी सरकार का ध्यान आकृष्ट किया जाय। व्यक्ति की आत्मनिर्भरता, कैसे गांव की और फिर देश की आत्म निर्भरता बन सकेगी, इस पर एक समग्र दृष्टि बनाने की आवश्यकता होगी।
3- जिन जिलों में अभी से कार्य शुरू करना है, उनकी पहचान की जाय, प्रत्येक जिले में ऐसे 10 लोगों को जोड़ा जाए जो गांव में रह रहे हैं। उनके माध्यम से कार्यक्रमों की शुरुआत की जाय।
4- आत्मनिर्भरता के मुद्दे पर एक लंबी चर्चा आयोजित की जाय और एक ठोस रणनीति बनाकर कार्य शुरू किया जाए।
5- बंधुता के विकास पर एक विशेष चर्चा आयोजित की जाएगी। इसमें देश के ऐसे तमाम लोगों को बुलाया जाए जो इस दिशा में काम कर रहे हैं। गांधीवादी विचारक अमरनाथ भाई को बुलाने का भी सुझाव आया है। उन्हें आगे कार्यक्रम में जरूर आमंत्रित किया जायेगा।