
नयी दिल्ली: शीतलहर, कोहरे और बारिश की मार झेलते हुए दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के आंदोलन का आज 38वां दिन है। आंदोलनकारी किसानों के लिए एक-एक दिन भारी साबित हो रहा है। किसानों का जज्बा बना हुआ है और जैसे-जैसे मौसम का पारा गिर रहा है वैसे-वैसे किसान आंदोलन का पारा चढ़ रहा है। किसान संगठन इस बात पर अड़े हुए हैं कि कि उन्हें कृषि कानून वापस लिए जाने से कम मंजूर नहीं। कृषि कानून वापस लिए जाने तक आंदोलन जारी रहेगा। इस बीच किसान संगठन के नेताओं ने घोषणा की है कि यदि 4 जनवरी को सरकार के साथ बातचीत में गतिरोध खत्म नहीं होता है तो वे 26 जनवरी को “किसान गणतंत्र परेड” का आयोजन करेंगे।
लेकिन इन सब के बीच कुछ ऐसा भी घटित हो रहा है जो वास्तव में देशवासियों के लिए चिंता की बात है। आज गाजियाबाद में दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के धरने में शामिल 75 वर्षीय किसान कश्मीर सिंह ने फांसी लगा ली। ऐसा भी नहीं है कि ये पहली मौत है। अब तक 53 लोगों की जान जा चुकी है। इनमें से 20 की जान पंजाब में और 33 की दिल्ली की सीमाओं पर गई है।
नहीं रूक रहा है किसानों के मौत का सिलसिला
आज तड़के रामपुर जनपद के बिलासपुर निवासी किसान सरदार कश्मीर सिंह ने धरनास्थल पर शौचालय में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। यह घटना यूपी गेट यानी गाजीपुर बॉर्डर पर घटी। किसान कश्मीर सिंह ने अपने सुसाइड नोट में लिखा कि मेरा अंतिम संस्कार मेरे पोते-बच्चे के हाथों यहीं दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर होना चाहिए। उनका परिवार बेटा-पोता यहीं आंदोलन में निरंतर सेवा कर रहे हैं। पुलिस ने अब सुसाइड नोट अपने कब्जे में ले लिया है। कश्मीर सिंह ने अपनी आत्महत्या के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने लिखा है कि आखिर हम कब तक यहां सर्दी में बैठे रहेंगे। इसका कारण आंदोलन के मद्देनजर इस सरकार को फेल होना बताया है और कहा है कि यह सरकार सुन नहीं रही है इसलिए अपनी जान देकर जा रहा हूं। सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची और शव को फंदे से उतारा गया। वहीं इस घटना के विरोध में आज भारतीय किसान यूनियन लोकशक्ति के दर्जनों कार्यकर्ताओं एवं किसानों ने चिल्ला बॉर्डर धरनास्थल पर मौन धारण कर शहीद सरदार कश्मीर सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की और यह संकल्प लिया कि शहीद किसानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा जब तक सरकार तीन काले कानूनों को वापस नहीं लेती है तथा एमएसपी पर गारंटी कानून नहीं बनाती है तब तक भारतीय किसान यूनियन लोकशक्ति अंतिम क्षण तक इस लड़ाई को लड़ती रहेगी।
पहले भी घटी है कई घटनायें
26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का प्रदर्शन शुरू हुआ। सात दिसंबर के दिन दिल्ली टिकरी बॉर्डर 48 वर्षीय मेवा सिंह की जान चली गई। वे मोगा जिले के रहने वाले थे। प्रदर्शन में शामिल लोगों का कहना है कि मृत्यु से पहले वे आंदोलन को लेकर एक कविता लिख रहे थे। कुछ ही लाईन लिखा होगा और जैसे ही वो बाहर गये वहां उनके गिरने की खबर आई। बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। इसी तरह पंजाब के लुधियाना ज़िले से आए 76 वर्षीय किसान भाग सिंह की 11 दिसंबर को मौत सिंघु बॉर्डर पर गई। उनके बेटे रघुबीर सिंह का कहना है कि वे प्रदर्शन स्थल पर बेहद ठंड में रह रहे। इसी दौरान उन्हें दर्द हुआ और उन्हें सोनिपत स्थित रोहतक अस्पताल ले जा गया और उन्हें बचाया न जा सका।
मरने वालें किसानों की फेहरिस्त लंबी

हरियाणा के करनाल ज़िले से ताल्लुक रखने वाले एक 65 वर्षीय आध्यात्मिक नेता बाबा राम सिंह की ख़ुदकुशी की घटना की बात तो संत ने ख़ुद को गोली मार लेने की बात सामने आई थी। बाबा राम सिंह की मृत्यु के बाद भी एक सुसाईड नोट सामने आया जिसमें कहा गया कि आध्यात्मिक नेता ठंड के मौसम में प्रदर्शन स्थल पर बैठे किसानों की परेशानियों को देखकर दुखी थी। उन्होंने सरकार पर प्रदर्शनकारी किसानों की अनदेखी करने का आरोप लगाया था। वही गुरूदास पुर के रहने वाले 75 वर्ष के अमरीक सिंह की मौत टिकरी बॉर्डर पर ठंड से हो गई। 70 वर्ष की मलकीत कौर हों या 55 वर्ष के जनक राज इन सब लोगों ने अपनी जान गंवाई। इसी तरह संगरूर के रहने वाले 36 वर्ष के भीम सिंह की मौत 16 दिसंबर को सिंघु बॉर्डर पर हो गई। बरनाला के रहने वाले स्कूल शिक्षक यशपाल शर्मा की मौत प्रदर्शन के दौरान एक टोल प्लाज़ा पर दिल का दौरा पड़ने से हो गई थी। बरनाला के रहने वाले 74 वर्षीय किसान काहन सिंह की मौत सड़क दुर्घटना में हो गई। वे दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे थे।
समय-समय पर होने वाली इन मौतों से किसान नेता परेशान तो हैं लेकिन उनका मनोबल कमजोर नहीं हुआ है। किसान आंदोलन से जुड़े लोगों का साफ तौर पर कहना है कि यदि 4 जनवरी को सरकार के साथ होने वाली वार्ता में तीन कृषि कानून को वापस लिये जाने पर बात नहीं बनती है तो वे आंदोलन और तेज करेंगे।
मांग नहीं मानी तो 26 जनवरी को “किसान गणतंत्र परेड”
इस बाबत किसानों के आंदोलन का समन्वय कर रही 7 सदस्यीय समन्वय समिति ने आज राष्ट्रीय राजधानी में अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार को साफ कह दिया है की अगर किसानों की मांगें नहीं मानी गई तो दिल्ली के चारों ओर लगे मोर्चों से किसान 26 जनवरी को दिल्ली में प्रवेश कर ट्रैक्टर ट्रॉली और अन्य वाहनों के साथ “किसान गणतंत्र परेड” करेंगे। 26 जनवरी तक किसान आंदोलन के दो महीने पूरे हो जाएंगे। किसान नेताओं ने यह स्पष्ट किया की यह परेड गणतंत्र दिवस की आधिकारिक परेड की समाप्ति के बाद होगी। साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से अब से 26 जनवरी के बीच अनेक स्थानीय और राष्ट्रीय कार्यक्रमों की घोषणा भी की गई। उनका कहना है कि आर पार की लड़ाई में अब हम एक निर्णायक मोड़ पर आ पहुंचे हैं। हमने इस निर्णायक कदम के लिए गणतंत्र दिवस को चुना क्योंकि यह दिन हमारे देश में गण यानी बहुसंख्यक किसानों की सर्वोच्च सत्ता का प्रतीक है।”
ये होगी आगे की रणनीति
अगर सरकार से 4 जनवरी की वार्ता विफल रहती है तो 6 जनवरी को किसान केएमपी एक्सप्रेसवे पर मार्च निकालेंगे। उसके बाद शाहजहांपुर पर मोर्चा लगाए किसान भी दिल्ली की तरफ कूच करेंगे। 13 जनवरी को लोहड़ी/ संक्रांति के अवसर पर देशभर में “किसान संकल्प दिवस” मनाया जाएगा और इन तीनों कानूनों को जलाया जाएगा। 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मना कर देश की खेती में महिलाओं के योगदान को रेखांकित किया जाएगा। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की याद में “आजाद हिंद किसान दिवस” मनाकर सभी राजधानियों में राज्यपाल के निवास के बाहर किसान डेरा डालेंगे।