
नयी दिल्ली: सरकार और किसानों के बीच बातचीत में जो किसान नेता अग्रणी भूमिका में हैं उन प्रमुख किसान नेताओं के पृष्टभूमि को समझने की जरूरत है जो सरकार से बातचीत कर रहे हें। तब शायद वार्ताकारों के बीच गतिरोध को समझने में मदद मिले। हालांकि हर बातचीत के पहले सरकार के तरफ से ये कहा जाता है कि वार्ता सकारात्मक माहौल में हुई लेकिन इन सकारात्मक वार्ता के बावजूद आंदोलन जस का तस बना रहता है और आम जन की परेशानी भी।
दर्शन पाल: दर्शन पाल एक माओवादी नेता भी हैं। वह पीपल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ इंडिया (PDFI) के संस्थापक सदस्य हैं। यह संगठन उस माओवादी क्रांति का ही अनुगामी था जिसके तहत देश के विभिन्न हिस्सों में बर्बरतापूर्ण हिंसक कार्रवाइयों को अंजाम दिया जाता है। पीडीएफआई के कार्यकारी समिति के 51 सदस्य होते थे। दर्शन पाल के अलावा वरवरा राव, कल्याण राव, मेधा पाटेकर, नंदिता हक्सर, एसएआर गीलानी, बीडी शर्मा आदि भी पीडीएफआई के संस्थापक सदस्य रहे हैं।
योगेंद्र यादव: वैसे तो प्रो योगेंद्र यादव चुनाव विश्लेषक हैं लेकिन किसी भी फटे में टांग अड़ाना इनकी काबीलियत है। वामपंथियों से लेकर माओवादियों तक से इनका गहरा नाता है हालाकि चेले किशन पटनायक के बताये जाते हैं।
कुलवंत सिंह संधु : सीपीएम के छात्र विंग एसएफआई से अपनी राजनीति शुरू करने वाले 65 साल के संधु का सीपीएम से गहरा नाता रहा है।
निर्भय सिंह दूधिके: 70 साल के निर्भय सिंह कीर्ति किसान यूनियन के नेता हैं। आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में रहे। इसके बाद उन्होंने 1980 में सीपीएम ज्वाइन कर लिया।
हन्नन मोल्लाह- ऑल इंडिया किसान सभा के 74 वर्षीय मोल्लाह सीपीएम से जुड़े हुए हैं। 16 साल की उम्र में सीपीएम ज्वाइन किया और पोलित ब्यूरो तक पहुंचे।
सुरजीत सिंह फूल: भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के 75 वर्षीय नेता फूल इस आंदोलन के सबसे चर्चित चेहरा हैं। उन्हें 2009 में पंजाब सरकार ने माओवादियों से संबंध के आरोप में यूएपीए लगा दिया था और कड़ी पूछताछ की थी।
राकेश टिकैत: भारतीय किसान यूनियन के नेता रहे स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र राकेश टिकैत पहले दिल्ली पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे। राकेश टिकैत ने दो बार राजनीति में भी आने की कोशिश की है। पहली बार 2007 मे उन्होंने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था। उसके बाद राकेश टिकैत ने 2014 में अमरोहा जनपद से राष्ट्रीय लोक दल पार्टी से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था। लेकिन दोनों ही चुनाव में इनको हार का सामना करना पड़ा था।
बलबीर सिंह राजेवाल: पंजाब की प्रमुख किसान यूनियन भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के प्रमुख बलवीर सिंह राजेवाल संयुक्त किसान मोर्चे के सात सदस्यीय कोर कमेटी के सदस्य भी हैं। राजेवाल सिर्फ इतना चाहते हैं कि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं। न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून बनाया जाए और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए।
जोगिंदर सिंह उगराहां: 75 साल के जोगिंदर पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन ‘भारतीय किसान यूनियन उगराहां’ के अध्यक्ष हैं। जोगिंदर सिंह भारतीय सेना में भी रह चुके हैं। संगरूर में एक जगह हैं उगराहां, वहीं के रहने वाले हैं। जोगिंदर ने साल 2002 में भारतीय किसान यूनियन उगराहां की स्थापना की। ये भारतीय किसान यूनियन (BKU) से अलग संगठन है। खास बात ये है कि इस यूनियन में बड़ी तादाद में महिलाएं भी शामिल हैं।
सरवन सिंह पंधेर: ये पंजाब के माझा क्षेत्र के एक प्रमुख युवा किसान नेता हैं। 3 नए कृषि कानून के पास होने के बाद किसान मजदूर संघर्ष समिति पंजाब के महासचिव सरवन सिंह पंढेर ने 24 से 26 सितंबर तक ‘रेल रोको’ आंदोलन करने का फैसला किया था।
जगजीत सिंह डल्लेवाल: भारतीय किसान यूनियन (एकता-सिद्धूपुर) के अध्यक्ष जगजीत सिंह डल्लेवाल पंजाब के फरीदकोट जिले के डल्लेवाल गांव से हैं। माना जाता है कि भारतीय किसान यूनियन-उग्राहां के बाद जगजीत सिंह का संगठन पंजाब का दूसरा सबसे बड़ा किसान संगठन है। पंजाब के 14 जिलों में इनके संगठन का काम है और इन्होंने अपने संगठन को गैर राजनैतिक संगठन बनाए रखा है।
वीएम सिंह: राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह किसानों की आवाज को प्रमुखता से उठाते रहे हैं। वीएम सिंह का मानना है कि हाल ही में बनाए गए तीनों कृषि कानून किसानों को बर्बाद कर देंगे। यदि स्वामीनाथन आयोग की संस्तुतियों को लागू कर दिया जाए तो किसानों के बच्चों को प्राइवेट नौकरी के लिए भटकना नहीं पडे़गा।
गुरनाम सिंह चढूनी: भारतीय किसान यूनियन के हरियाणा अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने बड़ी तादाद में हरियाणा के किसानों को एकजुट करने का काम किया है। अब इन पर हत्या के प्रयास समेत 8 धाराओं में केस दर्ज हो गया है। एफआईआर में जनसमूह के साथ उपद्रव मचाने और वाहन चढ़ाकर हत्या करने की कोशिश करने व संक्रमण का खतरा फैलाने की धाराएं भी लगाई हैं।
उल्लेखनीय है की किसानों और सरकार के बीच 4 जनवरी की मीटिंग बेनतीजा रही और अगली तारीख 8 जनवरी तय हुई। यह 9वें दौर की बैठक हो रही है। साफ है ऐसा कोई संकेत नहीं है की वार्ता सफल होगी। किसान यूनियनें समाधान नहीं चाहती और इसको लेकर उनकी कुछ और ही योजना है।