मंगरूआ
पटना: लॉकडाउन के कारण जिस तरह से प्रवासी मजदूर गांव लौट रहे हैं वैसे में बाहर से अपने गांव लौटे ग्रामीणों को लेकर एक तरफ गांव वालों के मन में इनके संक्रमित होने को लेकर आशंका के बादल तो हैं, वहीं इनके लौटने से गांव में चहल पहल है। कहीं क्वारंटिन सेंटर सजा हुआ है तो कहीं इस बात के लिए बाकी ग्रामवासी जुगत में लगे हुए हैं कि कैसे इनका जीवन आसान बनाया जाए। इस बीच जगह-जगह पंचायतों द्वारा मनरेगा के काम भी शुरू कर दिए गये हैं। जहां पहले से जॉबकार्ड रखने वाले मजदूरों को तो काम मिल ही रहा है साथ ही बाहर से गांव लौटे ग्रामीणों को भी काम दिया जा रहा है। कहीं सड़क बनाया जा रहा है, तो कहीं तालाब खोदे जा रहे हैं, तो कहीं आगामी मानसून को देखते हुए जल-जीवन-हरियाली योजना के तहत गांव की जलधारण क्षमता बढ़ाने का प्रयास तो चल ही रहा है साथ ही बड़े पैमाने पर पौधारोपण की तैयारी चल रही है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चल रहे इस जल जीवन हरियाली योजना के तहत बड़े पैमाने पर काम चल रहा है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ पटना जिले के इन दिनों 800 से ज्यादा छोटे-बड़े जलाशयों की खुदाई और बेहतर रखरखाव का काम चल रहा है। इस काम में एक तरफ गांव के श्रमिक तो काम कर ही रहे हैं बाहर से लौटे लगभग 700 श्रमिकों को भी काम मिला है। केवल सरकारी स्तर पर ही नहीं बल्कि मनरेगा के तहत लोग बड़ी संख्या में निजी जलाशय भी बनवा रहे हैं। लगभग 55 निजी जलाशयों के खुदाई का काम चल रहा है।
तेजी से चल रहा है जल जीवन हरियाली योजना
लगभग हर साल बरसात के मौसम में बड़ी संख्या में पौधारोपण का काम किया जाता है। विशेष रूप से नीतीश सरकार ने जल जीवन हरियाली योजना के विस्तार के लिए व्यापक काम किया है। इसी का परिणाम है कि एक तरफ जलाशय बनाये जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ पौधा रोपण का काम भी तेजी से चल रहा है। केवल पटना जिले के आंकड़ों को ही देखें तो कुल 23 प्रखंडों की 310 ग्राम पंचायतों में जल जीवन हरियाली योजना के तहत काम चल रहा है। इसमें कुल 39 हजार मजदूर जिसमें बड़ी संख्या में प्रवासी भी हैं, जलाशय, ताल—तलैया, आहर, सोख्ता के खुदाई में काम में लग गए हैं।
नौबतपुर के अहुआरा गांव के तिलेश मांझी और उमेश मांझी ने बताया कि यदि ग्रामीणों को गांव में ही काम मिल जाए तो बाहर जाने की जरूरत ही क्या है। उन्होंने कहा कि सबसे अच्छी बात है कि यह ताल तलैये भी हमारे ही काम आएंगे। वहीं अगवानपुर पंचायत के मुखिया मुन्ना कुमार सिंह कहते हैं, मनरेगा योजना से काम चल रहा है। गांव घर में लोगों के बाहर से वापस लौटने के बाद अब मजदूरों की कमी भी नहीं है। बड़ी बात ये है कि जो मजदूर कुछ समय पहले बाहर से लौटे थे वे भी अब क्वारंटीन पीरियड खत्म होने के बाद अपने घर में रह रहे हैं और गांव में मनरेगा या अन्य योजना के तहत चलाए जा रहे गतिविधियों में योगदान देने को तैयार हैं। ऐसा ही एक परिवार है बाढ़ के बहराम गांव के दंपत्ती उषा देवी और इंद्रदेव यादव 30 मार्च को सूरत से लौटै हैं। क्वारंटीन के बाद अब वे गांव में नहर खुदाई के काम में लग गए हैं। इस परिवार का कहना है कि कोरोना के कारण ही सही घर लौटना संभव हो पाया है और घर की रोटी मिल रही है। कोई दिक्कत नहीं है गांव में अपनों के बीच वो काफी खुश हैं। उल्लेखनीय है कि पटना जिले में 700 मजदूर हैं, जो दूसरे राज्यों से लौटकर मनरेगा के कामों में लगे हुए हैं।
बदल सकती है बिहार के गांवों की तस्वीर
वहीं पटना के उप विकास आयुक्त रिंची पांडेय कहते हैं, अभी कुल मजदूर क्वारंटीन सेंटर में हैं। आगे चलकर रोजगार पाने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या और बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि कुशल कामगारों को दूसरे कार्य भी दिए जाने हैं वहीं जो अकुशल हैं उनके लिए जॉब कार्ड हैं। उन्होंने बताया कि 352 मजदूरों को नए सिरे से मनरेगा का जॉब कार्ड दिया गया है। बरसात से पहले ताल तलैयों को तैयार कर लेने का लक्ष्य है, ताकि पानी की समस्या से छुटकारा मिल सके।
उल्लेखनीय है कि केवल पटना जिले में ही नहीं बल्कि राज्य के सभी जिलों में मनरेगा और जल जीवन हरियाली योजना चलाई जा रही है। प्रदेश के मुखिया नीतीश कुमार ने प्रदेश के सभी विभागों को रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए निर्देश दिए हैं। जिसके तहत राज्य सरकार ने बिहार में 50 लाख श्रमिकों को रोजगार देने के लिए कार्ययोजना बनाने की तैयारी की है।
एक आंकड़े के मुताबिक सीएम नीतीश के कहने पर अभी-तक दो करोड़ 17 लाख मानव दिवस का सृजन किया गया है। साथ ही तीन लाख 91 हजार योजनाएं शुरू कर दी गई हैं। बिहार में मनरेगा, नल-जल योजना, नाली-गली पक्कीकरण योजना, सड़क निर्माण और जल-जीवन-हरियाली के तहत काम हो रहे हैं। राज्य सरकार सड़क व भवन निर्माण, ग्रामीण विकास, जल संसाधन और चौबीस हजार करोड़ की महत्वाकांक्षी जल-जीवन-हरियाली योजना में प्रवासी कामगारों के लिए रोजगार बनाने के प्रयास कर रही है। मनरेगा के तहत करीब नौ लाख लोग सरकार की विभिन्न योजनाओं में रोजगार पा रहे हैं। ये कामगार राज्य में कृषि के साथ-साथ मत्स्यपालन, पशुपालन, खाद्य प्रसंस्करण, मक्का व सब्जी उत्पादन की तस्वीर बदल सकते हैं। मजदूरों की उपलब्धता से नकदी फसलों की पैदावार बढ़ सकती है, जो राज्य को आत्मनिर्भर बनाने में काफी मददगार होगी। लेकिन उन्हें भरोसा देना होगा और रोकना होगा। बिहार-यूपी के मजदूर कई राज्यों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। देश के विकसित राज्यों को श्रम की कमी के खतरे का आभास है तभी तो वे तरह-तरह के जतन कर रहे।
उद्योग विभाग के सचिव नर्मदेश्वर लाल का कहना है कि राज्य में कई तरह के काम हैं। इन कामों की संख्या को लेकर एक पोर्टल लांच किया गया था। सभी जगहों से इसका डाटा आने के बाद इसे पोर्टल पर अपलोड किया जाएगा। जो प्रवासी अपना उद्योग शुरू करना चाहते हैं, उन्हें पूरी मदद मिलेगी।