नई दिल्ली: गांवों में ग्रामीण पेयजल आपूर्ति प्रणाली की निगरानी के लिए, केन्द्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने डिजिटल मार्ग अपनाने का निर्णय लिया है। छह लाख से अधिक गांवों में जल जीवन मिशन के कार्यान्वन की प्रभावी निगरानी के लिए सेंसर आधारित आईओटी उपकरण का इस्तेमाल करने का फैसला लिया गया है। इसके लिए राष्ट्रीय जल जीवन मिशन ने टाटा कम्यूनिटी इनिशिएटिव ट्रस्ट (टीसीआईटी) और टाटा ट्रस्ट्स के साथ मिलकर पांच राज्यों उत्तराखंड, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश के दूरदराज स्थित कई गांवों में पायलट प्रोजेक्ट्स पूरे किए। इन पायलट प्रोजेक्ट्स की खास विशेषता किफायती मगर मजबूत सेंसर है जो समाधान को मापनीय और टिकाऊ बनाता है। टीम के सामने प्रस्तुत प्रमुख चुनौतियों में से एक, गुणवत्ता या काम से समझौता किए बिना पानी के बुनियादी ढांचे की लागत के छोटे से हिस्से (योजना के कुल पूंजीगत व्यय का <10-15%) पर मजबूत समाधान का विकास करना था। एक स्तर पर इस लागत के और भी कम होने की उम्मीद है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके निर्माताओं समेत ज्यादातर विक्रेता भारतीय हैं। यह पायलट प्रोजेक्ट कोविड-19 की चुनौतियों के बावजूद सितंबर 2020 में शुरू हुआ था।
यह तकनीक इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) पर आधारित रिमोट मॉनिटरिंग,सेंसर का उपयोग करके बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के लगभग वास्तविक जानकारी उपलब्ध करवाती है। इससे ना सिर्फ जमीनी स्तर पर प्रभावी निगरानी और प्रबंधन होता है बल्कि यह राज्य जलापूर्ति/पीएचईडी अधिकारियों और नागरिकों को भी वास्तविक समय की दृश्यता के लिए सक्षम बनाती है। प्रत्येक घर के लिए नल के पानी की नियमित आपूर्ति के दृष्टिकोण के साथ, ग्रामीण पेयजल की आपूर्ति योजना के लिए, परिचालन क्षमताओं में सुधार, लागत में कमी, शिकायत निवारण आदि के साथ, वास्तविक माप और निगरानी भी महत्वपूर्ण है। आंकड़ेसेवा उपलब्ध कराने और पानी जैसे अमूल्य प्राकृतिक संसाधन के लिएपारदर्शिता लाने में सुधार करेंगे। अतः इस प्रकार की प्रणाली की तैनाती के लिए मजबूत सामाजिक और आर्थिक वातावरण बनाया जा रहा है।
ग्रामीण पेयजल आपूर्ति डिजाइन देश के अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है। अतः यह पायलट प्रोजेक्ट्स भी विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में फैले हुए थे जिनमें पश्चिमी हिमालय, रेगिस्तानी क्षेत्र से लेकर गंगा के मैदान (-100 डिग्री सेल्सियस की कड़ी ठंड से लेकर 480 डिग्री सेल्सियस की भीषण गर्मी तक प्रसारित) शामिल हैं। इन पायलट प्रोजेक्ट्स में विभिन्न प्रकार के स्रोतों को शामिल किया गया है जैसे कि बोरवेल से भूजल, पहाड़ी क्षेत्रों में स्प्रिन्ग्स और सतही जल (नदी और बांध) और कुछ सौ से लेकर हजारों तक की आबादी वाले गांव। पायलट प्रोजेक्ट्स के तहत, राजस्थान के सिरोही जिले में पूरी तरह से ऑफ ग्रिड (सिर्फ सौर और बैटरी का इस्तेमाल करके) ग्रामीण वातावरण मेंअपनी तरह के पहले व्यापक (स्रोत से नल) रिमोट मॉनिटरिंग और नियंत्रण प्रणाली का प्रदर्शन किया गया।
परिचालन क्षमता प्रदान करने के साथ जल सेवा वितरण के विभिन्न प्रासंगिक पहलुओं जैसे कि मात्रा, अवधि, गुणवत्ता, दबाव और स्थिरता मापने के लिए कई प्रकार के सेंसर लगाए गए हैं जैसेकि फ्लो मीटर्स, भूजल स्तरीय सेंसर, क्लोरीन विश्लेषक, प्रेशर सेंसर, पम्प कंट्रोलर आदि। क्लाउड और एनालिटिक्स से प्रेरित आईओटी प्लेटफॉर्म जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) से जुड़ा हुआ है जो मजबूत डिसीजन सपोर्ट प्रणाली प्रदान करता है।
इन पायलट्स से कई परिणाम निकले क्योंकि इससे कटौती, लीकेज, कम दबाव जैसे वितरण के मुद्दों को पहचानने और कार्यस्थल पर समाधान निकालनेमें मदद मिली। इसने हाल ही में तेजी से घटते भूजल स्तर के बारे में अधिकारियों और समुदाय दोनों को चेताया जिससे कि ग्रामीणों ने अपने बोरवेल के पुनर्भरण के लिए स्रोत को मजबूत करने वाला ढांचा बनाया।इन पायलट्स के अन्य लाभों में समुदाय द्वारा पानी के कुशल और जिम्मेदारी भरे उपयोग, डेटा-अनेबल लीक डिटेक्शन के माध्यम से परिचालन लागत में कमी और भविष्यसूचक रखरखाव व स्वचालन शामिल हैं।
गांव में स्थानीय भाषा में विजुअल डैशबोर्ड वाले छोटी टीवी स्क्रीन हैं जिससे वीडब्ल्यूएससी/पानी समिति को सही कदम उठाने में मदद मिलती है। इससे सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन में मदद मिली है। पहले, इनमें से कुछ गांवों में नियमित रूप से पानी की कीटाणुशोधन प्रक्रिया नहीं की जाती थी। अब वीडब्ल्यूएससी (पानी समिति) अपने गांव की आईओटी स्क्रीन पर विजुअल इंडिकेटर के माध्यम से देखते हैं कि अवशिष्ट क्लोरीन के स्तर के आधार पर कब पानी का कीटाणुशोधन करना है।
ग्रामीण भारत के लिए आईओटी का विशिष्ट रूप से निर्माण करना वाई-फाई ब्रॉडबैंड और सेलुलर कनेक्टिविटी के नजरिए से लिए महत्वपूर्ण है। वास्तव में, ग्रामीण क्षेत्र में पानी के ज्यादातर स्थानों पर आईओटी उपकरणों को बिजली देने के लिए ग्रिड तक आसान पहुंच के लिए नेटवर्क की कमी है। टीसीआईटी के स्मार्ट वाटर मैनेजमेंट आधारित आईओटी के प्रोजेक्ट के प्रमुख श्री सिद्धांत मेसन का कहना है, “इसके संचार के लिए सैलुलर और आरएफ जैसी तकनीक के संयोजन के प्रयोग और कठिन स्थानों तक पहुंच के लिए सौर और बैटरी आधारित पावरिंग तंत्र के उपयोग की आवश्यकता है। इसके अलावा, डेटा ट्रांसमिशन की दरों का अनुकूल बनना बैटरी लाइफ बढ़ाने और परिचालन लागत को कम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।”
आगे का रास्ता
इन पायलट प्रोजेक्ट्स के बाद गुजरात, बिहार, हरियाणा और अरुणाचल प्रदेश समेत कई राज्यों ने 500 गांवों से लेकर कई जिलों में आईओटी आधारित रिमोट मॉनिटरिंग प्रणाली के लिए निविदाएं जारी की हैं। इनके अलावा, सिक्कीम, मणिपुर, गोवा, महाराष्ट्र और उत्तराखंड ने इस तकनीक के लिए रोल-आउट प्रोसेस शुरू कर दिया है।
इस प्रकार की नवाचारी तकनीक के कार्यान्वन से आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट विलेज समेतकेंद्रीय सरकार की कई पहलों को प्रत्यक्ष तौर पर बढ़ावा मिल सकता है और देश में बेहतरीन आईओटी इकोसिस्टम के साथ स्मार्ट सिटी परियोजना को भी लाभ मिलेगा। साथ ही यह पेयजल आपूर्ति क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा करेगा।
भारतीय गांवों में पेयजल आपूर्ति प्रणाली, भूजल स्रोत के सूखने, पम्प की विफलता, अनियमितता और अपर्याप्त जल आपूर्ति जैसी कई चुनौतियों का सामना कर रही है। यह चुनौतियां सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को बढ़ावा देती हैं जैसे कि महिलाओं का कुछ दूरी से लेकर कई किलोमीटर तक की दूरी से पानी लाना, कई जल जनित बीमारियां जिनसे आसानी से बचा जा सकता है, आर्थिक-मजदूरी का नुकसान और चिकित्सा पर खर्च। ग्रामीण जल आपूर्ति का प्रबंधन और प्रभावी निगरानी के लिए एक प्रणाली की स्थापना करना समय की आवश्यकता है।
2024 तक प्रत्येक ग्रामीण घर में नल के पानी का कनेक्शन प्रदान करने के लिए केंद्रीय सरकार का फ्लैगशिप कार्यक्रम जल जीवन मिशन (जेजेएम), जिसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के साथ साझा तौर पर लागू करना है, वह सभी ग्रामीण क्षेत्रों केघरों में नल के कनेक्शन के जरिए प्रतिदिन गुणवत्तापूर्णपानी की पर्याप्त मात्रा (55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन-एलपीसीडी) की आपूर्ति के प्रबंधन और निगरानी के लिए डिजिटल वॉल और रिमोट कमांड व नियंत्रण केंद्र स्थापित करने की कल्पना करता है।