बिहार में पंचायत चुनाव का कल आखिरी चरण है। कुछेक जगह पर परिणाम भी आ चुके हैं। कहीं खुशी है तो कहीं गम..लेकिन जीत हार के बीच मुद्दे कहीं गुम से होते हुए दिखे। पंचायत चुनावों के दौरान राजधानी के आसपास के पंचायतों का जायजा लेना दिलचस्प रहा। हमने अपना ध्यान पेयजल, सिंचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और आवागमन के साधन पर ध्यान केन्द्रीत रखा। राजधानी के आसपास के गाँव में कुछ जगहों पर जो महत्वपूर्ण मुद्दे थे चुनाव के दौरान उसको टटोलते की कोशिश की वरिष्ट पत्रकार अमरनाथ ने.
पेश है रिपोर्ट…
गंगा कटाव की शिकार पानापुर पंचायत में चार साल पहले तत्कालीन सांसद रंजन प्रसाद यादव ने आर्सेनिक वाले पानी से निजात दिलाने के लिए सौर्य उर्जा संचालित ट्रीटमेंट प्लांट लगवाया। गांव में जगह जगह पाइप द्वारा पानी की आपूर्ति करने की व्यवस्था की गई ताकि पंचायत के लोगों को स्वच्छ पेयजल मिल सके, लेकिन उचित देखरेख के अभाव में प्लांट शोभा की वस्तु बन गई है। तीन चार महीने में ही प्लास्टिक की टंकी टूट गई और तब से नलकूप बंद पड़ा है।
तब सांसद आदर्श ग्राम योजना नहीं थी, पर राज्यसभा सदस्य रंजन प्रसाद यादव की विशेष कृपा होने से यहां तीन कमरे का प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र भी बना। लेकिन रखरखाव के आसपास स्वास्थ्य केन्द्र परिसर झाड़ झंखाड से अटा पडा है। भवन के आसपास छोटे-बडे़ पेड़ पौधे उग गए है। केन्द्र खुलता नहीं, कोई जानता नहीं कि यहां डाक्टर और नर्स पदास्थापित है या नहीं। सोलर लाइट दिखावे की वस्तु बनकर रह गई है।
पटना और समस्तीपुर जिले की सीमा पर हरदासपुर दियारा पंचायत सही मायने में टापू है जो चारों ओर से गंगा नदी से घिरा है। हरदासपुर पंचायत में पानी में आर्सेनिक और फलोराइड की मात्रा अधिक होने से कई लोग विकलांग हो चुके हैं। बख्तियारपुर के अखिलेष्वर बताते हैं कि चार साल पहले गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बनाने की स्वीकृति मिली थी जो आज तक धरातल पर नहीं उतरी। बीमार पडने पर लोग झोलाछाप डाॅक्टरों के भरोसे होते है। आवागमन का इकलौता साधन नाव है। इसपर मवेशी और आदमी एकसाथ आते जाते है। सबसे नजदीक के बाजार अर्थात प्रखंड मुख्यालय बख्तियारपुर जाने में करीब चार घंटा लगता है। बरसात के चार महीने पंचायत के चारों गांवों का आपस में भी संपर्क नहीं रह पाता।
विक्रम प्रखंड का दनाड़ा कटारी पंचायत में नहर तो आई है पर उसका पानी खेतों तक नहीं पहुंचता, सिंचाई नहीं हो पाती। पंचायत में प्राथमिक और मध्य विद्यालय तो हैं, पर हाईस्कूल छह किलोमीटर दूर है। इसलिए लड़कियां पांचवी के बाद नहीं पढ़ पाती। बिक्रम के नंदकुमार गौतम बताते हैं कि इस पंचायत में कई विकास कार्य हुए हैं लेकिन गांवों की गली, और नाली का निर्माण, सोलिंग और ढलाई के काम नहीं हुए। सरकारी स्तर पर शोचालयों का निर्माण नहीं हुआ। करीब 12 हजार आबादी वाले पंचायत में दो स्वास्थ्य उपकेन्द्र हैं जो कभी कभी खुलते है। मरीजों को इलाज कराने छह किलोमीटर दूर प्रखंड मुख्यालय जाना होता है।
बेनी बिगहा पंचायत में आहर और पोखर की कमी नहीं है, पर उचित देखभाल के अभाव में बरसात में उनमें पानी जमा नहीं हो पाता। खेती के मौसम में किसानों के बीच हाहाकार मचा रहता है। किसान पटवन के लिए पटना-सोन नहर से जुड़े जवारपुर राजवाहा पर निर्भर रहते हैं। लेकिन गाद भर जाने के कारण राजवाहा में पानी नहीं आता। वर्षों से उसकी उडाही नहीं हुई। पंचायत में प्राथमिक विद्यालय तो हैं लेकिन मध्य और उच्च विद्यालय नहीं है, इसलिए मिडिल स्कूल की पढाई करने बच्चों को छह किलोमीटर की दूरी तय करनी पडती है। सरकारी स्तर पर चिकित्सा सुविधा नहीं है।
बख्तियारपुर प्रखंड के चंपापुर पंचायत के लोग जलजमाव से परेशान हैं। पंचायत के अधिकांश गांवों में जलजमाव की समस्या है। जल निकासी की कोई व्यवस्था वहीं है। जलापूर्ति योजना के अंतर्गत जलमीनार बना है, पर किसी काम का नहीं । टंकी और पाइप में लीकेज की वजह से जलजमाव का समस्या स्थाई हो गई है। अखिलेष्वर बताते हैं कि करीब 24 हजार आबादी वाला यह पंचायत महज एक स्वास्थ्य उपकेन्द्र के भरोसे है।
सोनमई तो सांसद आदर्श पंचायत है। केन्द्रीय मंत्री राम कृपाल यादव ने इसे गोद लिया है। लेकिन इस गांव के किसी व्यक्ति को शोचालय बनवाने के लिए सरकारी सहायता नहीं मिली। 2012 के 15 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहां झंडोत्तोलन करने आए थे। वह महादलितों के लिए ढेर सारी विकास योजनाओं की शुरूआत का दौर था। गांव के महादलित टोले में एक साथ डेढ सौ शोचालय बनवाए गए थे। आज उनमें से एक भी शोचालय चालू नहीं है। ग्रामीण राजेश कुमार बताते हैं कि सरकार ने इस गांव में सडक तो बनवा दी लेकिन नाली और शोचालय नहीं बनवाया। गांव की महिलाएं खुले में शोच जाती हैं। सडक-किनारा का उपयोग सर्वाधिक होता है। नाली का पानी घरों और दरवाजों पर जमा रहता है। पूरे पंचायत में एक भी हाइस्कूल नहीं है। स्टेटबैंक की एक शाखा तो है, लेकिन इतनी छोटी शाखा है कि उसमें ढेर सारे काम नहीं होते। स्थानीय सांसद यादव ने दो साल पहले गांव को गोद लिया, तब से कोई काम नहीं हुआ।