
संतोष कुमार सिंह
नयी दिल्ली: देश में स्वच्छता अभियान चल रहा है। जोर है घर की साफ—सफाई पर। लेकिन कूड़े का निस्तारण बड़ी समस्या का रूप लेते जा रहा है। गाजीपुर लैंडफिल साईट में हुए हादसे के बाद नागर समाज और पर्यावरण एजेंसियां जगी तो हैं लेकिन इसका निदान होता नहीं दिख रहा है। दिल्ली में फिलहाल तीन लैंडफिल साइट्स हैं- गाजीपुर लैंडफिल साइट, भलस्वा लैंडफिल साइट और ओखला लैंडफिल साइट। गाजीपुर के स्थान पर भलस्वा लैंड फिल साईट पर वहां का कूड़ा डालने की योजना बनी रही है लेकिन भलस्वा पहले से अपनी क्षमता से ज्यादा भर चुका है। ऐसे में इसे जल्दबाजी में लिया गया फैसला माना जा रहा है, जो खतरनाक साबित हो सकता है।
क्या है भलस्वा के हालात
इस लैंड फिल साईट में 1992 से ही लगातार कूड़ा डाला जा रहा है। 52 एकड़ में फैले भलस्वा लैंडफिल साइट फैला हुआ है। इसमें 42 एकड़ में लैंडफिल साइट और 10 एकड़ में प्लांट हैं। यहां लगभग 140 लाख मीट्रिक टन कूड़ा जमा हो चुका है। इसकी ऊंचाई करीब 45 फीट तक है। विशेषज्ञों का कहना है कि पहले से ही कूडे के पहाड़ में तब्दील हो आया यह साईट 5 फीट और ऊपर उठा तो गाजीपुर की तरह ही हादसा होने का खतरा है। भलस्वा लैंडफिल साइट के ऊपरी हिस्से में अब कूड़ा डालने के लिए महज 7-8 एकड़ एरिया ही इस्तेमाल किया जा सकता है। यहां कूड़े की ऊंचाई 4 मीटर ही बढ़ाई जा सकती है।
कचरे के ढेर पर बारिश का पानी पड़ते ही उसमें से जहरीला पानी रिसने लगता है जो लैंडफिल साइट के आसपास रहने वाले लोगों के लिए बेहद खतरनाक है।
क्या कहते हैं अधिकारी
उत्तरी एमसीडी के अधिकारियों की माने तो एमसीडी एक्ट के अनुसार किसी भी लैंडफिल साइट पर कूड़े का त्रिकोणाकार काफी महत्वपूर्ण होता है। भलस्वा लैंडफिल साइट के एरिया के अनुसार कूड़े की ऊंचाई 20 फीट से अधिक नहीं होना चाहिए। यहां कूड़े की ऊंचाई नियमों से दो गुना से अधिक ऊंची है। रोजाना नॉर्थ दिल्ली से करीब 2000 मीट्रिक टन कूड़ा आता है। अगर ईस्ट दिल्ली से रोजाना 2400 मीट्रिक टन कूड़ा भी जमा होने लगेगा, तो रोज 4400 मीट्रिक टन कूड़ा जमा होगा और इससे भयंकर खतरा पैदा हो सकता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इस दिशा में किये गये अध्ययनों से साफ है कि लैंडफिल साइट्स के आसपास की मिट्टी बेहद कंटैमिनेटिड और टॉक्सिक होती है। इससे जमीन के जरूरी पोषक तत्व भी मर जाते हैं। शोध के मुताबिक इन लैंडफिल साइट्स पर पानी का जो रिसाव हो रहा है उसमें भारी मात्रा में क्लोराइड, जिंक जैसे हैवी मेटल्स होते हैं। केवल भलस्वा से ही नहीं बल्कि तीनों लैंड फिल साईट से मिथेन जैसी गैस निकल रही है। मौसम के अनुसार इस गैस की मात्रा में कमी बेसी होती है।
आगे की राह
भलस्वा लैंड फिल साइट पर कूड़े के निस्तारण की बात तो पहले भी होती आयी है लेकिन गाजीपुर के हादसे के बाद कहा जा रहा है कि उत्तरी दिल्ली निगम भलस्वा लैंडफिल पर ग्रीन बेल्ट विकसित करेगा। निगम ने यहां पर पेड़-पौधे लगाकर पर्यावरण को सुधारने का निर्णय लिया है। पहले कहा जा रहा था कि इस कचरे का इस्तेमाल राजमार्ग बनाने में किया जाएगा। लेकिन इस कचरे को राजमार्ग बनाने के इस्तेमाल या जलाकर बिजली बनाने के अनुपयुक्त पाया गया है। निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अब भलस्वा लैंडफिल साइट पर ग्रीन बेल्ट विकसित करने की योजना बनाई जा रही है। कचरे के पहाड़ पर मिट्टी की एक परत डालकर वहां पर पेड़-पौधे लगाए जाएंगे।